अरविन्द कुमार सिंह
बिहार तथा नेपाल में कोसी नदी की विनाशलीला से कई सवाल खड़े हो गए हैं। आखिर नदियां बेलगाम क्यों होती जा रही हैं और भारत सरकर तथा राज्य सरकारें बाढ़ के स्थायी निदान की दिशा में ठोस रणनीति क्यों नहीं बना पा रही है? अगर बाढ़ों से आम आदमी को तबाह होने से बचाना है तो मजबूत इच्छाशक्ति से आगे बढऩा होगा।सदियों से बिहार के शोक के रूप में कुख्यात कोसी नदी ने हाल में जो महाप्रलय मचाया उससे मची हाहाकार की गूंज दुनिया के हर कोने तक पहुंच गयी है। करीब 200 साल के बाद यह अनहोनी देखने को मिली है कि कोसी पुराने रास्ते पर बहने लगी है और जहां पहले बाढ़ नहीं आती थी, वे इलाके भी डूब गए हैं। नदी पश्चिम से पूर्व की ओर 120 किलोमीटर खिसक गयी है।नेपाल के कुशहा में कोसी नदी पर बना तटबंध टूटने के कारण ही असली संकट खड़ा हुआ है। यह तटबंध वास्तव में 18 अगस्त को ही टूट गया था पर तब किसी को कमसे कम आशंका हीं थी कि कोसी अपने पुराने रास्ते पर चल देगी और चौतरफा तबाही का मंजर देखने को मिलेगा। सरकार और मीडिया दोनों सोयी थी । कोसी भारत नेपाल के मध्य बहनेवाली गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है। इसकी बाढ़ को लेकर भारत सरकार व नेपाल के बीच 25 अप्रैल 1954 को नेपाल के साथ समझौता हुआ था। इसके तहत बांध बने । हालांकि भारत नेपाल पर और नेपाल के नेता वहां की बाढ़ के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराते हैं। नेपाल का कहना है कि भारत में 11 बांधों का निर्माण नेपाल सीमा के करीब हुआ है ,जिसमें से आठ बांधों के बारे में नेपाल सरकार से सहमति भी नहीं ली गयी है।भारत सरकार कोसी नदी के बंधों और बैराज की मरम्मत और रखरखाव के लिए अपने खाते से धन देती है। लेकिन इसकी मरम्मत का पूरा दायित्व बिहार सरकार पर है। इस बांध का जीवनकाल 20 साल पहले ही समाप्त हो गया था,पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया। अब जो खबरें छन कर आ रही है, उसके मुताबिक तटबंध बचाया जा सकता था लेकिन ठेकेदारों की आपसी लड़ाई तथा बंदरबांट के चलते सदी की सबसे बड़ी आपदाओं में एक का जन्म हो गया। कोसी नदी का कहर भारत ही नहीं नेपाल भी झेल रहा है और काफी तबाही हुई है। बिहार मे कोसी के ताजा कहर से 15 जिलों में ऐसी तबाही मची है कि सेना और राहत टीमें भी लोगों को अभी तक सुरक्षित स्थानों तक नहीं पहुंचा सकी हैं।प्रधानमंत्री डा। मनमोहन सिंह तथा यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने बिहार के बाढग़्रस्त इलाको का दौरा करके इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया और प्रभावित लोगों के लिए एक हजार करोड़ रूपए का पैकेज तथा 1.25 लाख टन अनाज देने की घोषणा भी की है। रेल मंत्री लालू यादव तथा बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के दबाव के चलते केद्र सरकार खास तौर पर हरकत में आयी है। फिलहाल केन्द्र और राज्य सरकार के बीच श्रेय की राजनीति भी शुरू हो गयी है। इस समय उत्तर बिहार के जिलों की 40 लाख से अधिक आबादी सीधे चपेट में है और कोसी का पाट 18 किमी लंबा हो गया है। यही नहीं गंगा, घाघरा, बूढ़ी गंडक भी खतरे के निशान से ऊपर बढ़ गयी हैं। इसी तरह पंजाब में भी सतलुज में आयी बाढ़ से 540 गांव बुरी तरह प्रभावित हैंं।भारत का सबसे ज्यादा बाढग़्रस्त राज्य बिहार माना जाता है, जहां 76 फीसदी आबादी और करीब 74 फीसदी जमीन पर बाढ़ का खतरा बना ही रहता है। कोसी ही नहीं, गंडक , बागमती, बूढ़ी गंडक , कमला बलान, महानंदा समेत कुछ और नदियां हर साल नेपाल से तबाही का पैगाम लेकर बिहार आती है। बिहार के लोगों ने बाढ़ के साथ जीना सीख लिया है और राजनेताओं तथा राहत माफियाओं ने बाढ़ो से अपनी तिजोरियां भरना भी अरसे से जारी रखा है। इसी नाते हर साल बाढ़ बहुतों के लिए खुशहाली का पैगाम भी लाती है। लाखों मकान ध्वस्त हो जाते हैं और खेती तो खैर बर्बाद हो ही जाती है। अकेले बीती बाढ़ में ही बिहार में 6.90 लाख मकान ढ़ह गए थे। इस बार तबाही कितनी हुई है,इसका अंदाज पानी निकल जाने के बाद ही हो सकेगा। 1998 की भयानक यूपी -बिहार की बाढ़ के बाद भारत सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति बनायी थी ,जिसने कई योजनाएं बना कर क्रियान्वयन के लिए दोनो सरकारों के पास भेजा। बिहार में कोसी परियोजना भी इसमें शामिल थी। पर इस पर काम आगे नही बढ़ा।राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के मूल्यांकन के मुताबिक भारत में करीब 400 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ की संभावनाओंवाला है। अगर सरकार चाहे तो इनमें से 320 लाख हैक्टेयर क्षेत्र को बचा सकती है। हर साल बाढ़ से कमसे कम 80 लाख हैक्टेयर क्षेत्र प्रभावित होता है। इसमें से करीब 37 लाख हैक्टेयर फसली क्षेत्र होता है। इतने बड़े इलाको में पानी भरने से जाहिर है कि काफी मात्रा में अनाज उत्पादन भी प्रभावित होता है। लेकिन बाढ़ की समस्या के स्थायी निदान की दिशा मे कमिटी बनाने के अलावा और कोई ठोस प्रयास अभी तक किया नहीं गया है। कई राज्य तो ऐसे हैं, जहां बाढ़ स्थायी आयोजन ही हो गया है। देश में सबसे ज्यादा तबाही दक्षिणी -पश्चिमी मानसून ( 1 जून से 30 सिंतबर) के दौरान होता है। बाढ़ प्रबंधन राज्यों का विषय है और राहत प्रदान करना भी मुख्य रूप से उसके ही जिम्मे है, पर गंभीर मामलों में केन्द्र सरकार अपने कोष से राज्यों को मदद करती है। केद्रीय संसाधन मंत्रालय बाढ़ प्रबंधन का नोडल मंत्रालय बनाया गया है जो राज्य सरकारों से मिल कर ढ़ाचागत और गैर ढ़ाचागत उपाय करता है। बीते दो मौको पर प्रधानमंत्री ने बिहार की बाढ़ की विनाशलीला को करीब से देखा है। 2005 में जब वह बिहार के दौरे पर गए थे तो उन्होने दिल्ली लौटने के बाद केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष के नेतृत्व में 21 सदस्यीय कार्यबल गठित किया। यह बाढ़ तथा कटाव से संबंघित समस्या से निपटने के लिए बनाया गया था। जाहिर है कि इस दिशा में अगर कोई ठोस प्रयास किया गया होता तो तस्वीर बेहतर ही होती। पर ऐसा हुआ नहीं। इसी तरह बाढ़ की क्षति कम हो इसके लिए केद्रीय जल आयोग ने 171 बाढ़ पूर्वानुमान केद्र बना रखे हैं और चेतावनी भी राज्य सरकारों को भेजी जाती है। लेकिन इस सारे प्रयासों के बाद भी देश में बाढ़ें विकराल होती जा रही हैं। बाढ़ विभीषिका के चलते हर साल लाखों लोग विस्थापित होते हैं, जबकीसंचार तंत्र भी कई हिस्सो में टूट जाता है। यूपी, बिहार और असम के कई हिस्सों में तो आम तौर पर हर साल हाहाकार मचता है। यह भी देखने को मिल रहा है की हाल के सालों में बाढ़े अधिकि प्रलयंकारी होती जा रही है। राजस्थान जैसे मरूप्रदेश के जैसलमेर जैसे इलाको में भयानक बाढ़ आयी थी । देश के अधिकाश बाढ़ प्रवणक्षेत्र गंगा तथा ब्रहमपुत्र के बेसिन , महानदी, कृष्णा और गोदावरी के निचले खंडों में आते हैं। नर्मदा और तापी भी बाढ़ प्रवण है पर गंगा और ब्रहमपुत्र के बेसिन से लगे राज्यों मेंं तो बाढ़ आती ही रहती है। गंगा बेसिन की सभी 23 नदियों की प्रणाली पर अध्ययन कर नियंत्रण प्रणालियों के लिए मास्टर योजनाएं भी बनी और श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में ब्रहमपुत्र और उसकी सहायक नदियो के लिए मास्टर योजनाए तैयार करने के लिए 1980 में ब्रहमपुत्र बोर्ड का गठन किया गया था। बोर्ड ने असम में धौला, हाथीघुली, माजुली दीप में कटावरोधी स्कीम तथा पगलादिया बांध परियोजना शुरू की है। बाढ़ से क्षति के विरूद्द उपयुक्त सीमा तक संरक्षण प्रदान करने के लिए विभिन्न संरचनात्मक और गैर संरचनात्मक उपायों के तहत भंडारण रिजर्वोयर, बाढ़ तटबंध, ड्रेनेज चैनल, शहरी संरक्षण निर्माण कार्य , बाढ़ पूर्वानुमान तथा बंद पड़ी नालियों और पुलो को खोलने जैसे कार्य प्रमुख हैं।हाल में केंद्रीय जल आयोग ने बाढ़ संभावित 6 नदियों ब्रहमपुत्र, कोसी, गंडक , घघ्घर, सतलुज और गंगा के आकृतमूल अध्ययन का काम अपने हाथ में लिया । इसके पहले भी काफी जांच पड़ताल हो चुकी है। पर असली सवाल यह उठता है की बाढ़ों को नियति मान कर चला जाये या फिर दलालों और स्वार्थी तत्वों का जमघट तोडऩे के लिए ठोस रणनीति बना कर इस दिशा में प्रभावी नियंत्रण का कार्य आगे बढ़े।
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1 टिप्पणी:
sir bahut hi achhe dhang se aapne bihar ki badhaali ko kalam badh kiya hai. lekin ye kaafi purana post hai....blog pe fir se likhiye sir jisse ki hum patrakaron ko aur chhatron ko kuchh achha mile padhne ko.
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